चोला और पाला बदलकर अभी -अभी बीजेपी में शामिल हुए मुकुल रॉय और देश को उनकी ‘फौरी जरुरत’ समझने के लिए गूगल की गलियों में डाउन द मेमोरी लेन की सैर कर कर रहा था। एक बार आप लोग भी गूगल के गलियारों में घूम आइए. ‘की वर्ड ‘ मैं ही दे देता हूं, ताकि आपको ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े। ‘मुकुल रॉय और भ्रष्टाचार ‘, ‘मुकुल रॉय शारदा ‘, ‘मुकुल रॉय नारदा’, ‘मुकुल रॉय सीबीआई ‘, ‘मुकुल रॉय गिरफ्तारी’, ‘मुकुल रॉय घोटाला’, ‘मुकुल रॉय स्टिंग’ समेत मुकुल रॉय के साथ इन विशेषणों के बाकी पर्यायवाची शब्दों का भी इस्तेमाल करते हुए गूगल सर्च करें। मुकुल रॉय साहब की काली कथा का हिसाब - किताब वाले सैकड़ों पन्ने खुलते जाएंगें। उन्होंने हाल के वर्षों में बंगाल की सिसायत में किन वजहों से नाम कमाया है, उसकी तफसील से जानकारी भी मिल जाएगी। अगर आपको हिन्दी सर्च में दिक्कत हो तो अंग्रेजी में इन्ही शब्दों का तर्जुमा करके सर्चे करें। नतीजे और ज्यादा विस्तार से मिलेंगे। जल्दी मिलेंगे। उसके बाद आप एक और ‘की वर्ड ‘सर्च करें - ’मुकुल रॉय बीजेपी ‘। इस सर्च से आप ये समझ पाएंगे कि बीजेपी और मुकुल रॉय के बीच बीते कुछ दिनों से कैसी खिचड़ी पक रही थी? साझा चूल्हे पर कब से और कितनी आंच में खदक रही थी? साथ ही बीजेपी नेताओं ने अपने मुखारविंद से बीते महीनों -सालों में मुकुल रॉय साहब को भ्रष्टाचारी साबित करने के लिए जिन शब्दों और बयानों से नावाज गया है, वो भी आपको आसानी से मिल जाएगा। मुकुल रॉय बंगाल की राजनीति के वो वीर हैं, जिनके खिलाफ सीबीआई नाम तोते के पास सबूतों का पुलिंदा है। शारदा घोटाले में मुकुल रॉय का नाम आया था। नारादा स्टिंग में उनके घोटालों का सबूत आया था। संक्षिप्त में सिर्फ इतना बता दें कि सीबीआई ने नारदा स्टिंग मामले में पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 13 लोगों के खिलाफ अप्रैल में प्राथमिकी दर्ज की थी। जिसमें सांसद मुकुल रॉय का भी नाम है। 11 सितंबर को केंद्र की दो एजेंसियों केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नारदा स्टिंग जांच के सिलसिले में मुकुल रॉय से पूछताछ की थी. यानि उनकी गर्दन सीबीआई के शिकंजे में थी। अभी भी होगी शायद लेकिन एक फर्क अब आ गया है। उनके कंधे पर देश की सत्ताधारी और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का हाथ आ गया है। गर्दन सीबीआई के हाथ में रहे तो रहे।
जब से शारदा -नारदा का मामला उजागर हुआ है तब से जितने भी बीजेपी नेता बंगाल गए हैं, सब ममता और उनके सिपहसालार मुकुल रॉय के सिर पर घपलों -घोटालों का घड़ा फोड़कर ही वापस आए हैं। बीजेपी के बंगाल प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष तो मुकुल रॉय के बारे में बयानों का रिकार्ड बना चुके हैं। दिल्ली से चलने वाली बीजेपी के आईटी सेल से भी मुकुल रॉय के घोटालों को पब्लिक डोमेन में विस्तार देने के लिए न जाने ट्वीट, रिट्वीट कराए जाते रहे हैं। मुकुल रॉय के चेहरे पर भ्रष्टाचार की कालिख पुती रहे और इस कालिख के बड़े हिस्से का छिड़काव ममता बैनर्जी पर होती रहे, ये काम सोशल मीडिया पर गोले दागने वाले बीजेपी के सायबर वीर करते रहे हैं। गूगल सर्च से आपको ये भी पता चलेगा कि कैसे सीबीआई ने मुकुल रॉय को घोटालों के आरोप में दबोचा? कैसे अपने प्यारे मुकुल रॉय को सीबीआई के शिकंजे से बचाने के लिए ममता बैनर्जी सीधे पीएम मोदी पर लगातार मिसाइल दाग रही थीं? सड़क पर उतरने को तैयार थीं। बयान दे रही थीं कि उनके मुकुल रॉय को पीएम मोदी के इशारे पर फंसाया जा रहा है। तभी खबर ये फैली कि मुकुल रॉय खुद बचने के चक्कर में घर का भेदी बनने को तैयार हो गए हैं। ममता और अपनी पार्टी के गोरखधंदे की जानकारियां लीक करके मदद सीक कर रहे हैं।
कई नेताओं की तरफ से कहा गया कि रॉय साहब सीबीआई के दवाब में आ गए थे. उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए टीएमसी से जुड़ी जानकारी एजेंसी को दी थीं. इसी बीच बीजेपी के कुछ नेताओं की तरफ से उन्हें ऑफर मिलने की खबरें भी अंत:पुर में आने लगी थी। ममता ने उन्हें पार्टी से बाहर रास्ता दिखाने का फैसला किया तो मुकुल राय साहब ने भी कहा -तुम क्या निकालोगे, मैं ही नहीं रहूंगा पार्टी में। उसके बाद जो हुआ, वो सामने है। उधर से इधर आ गए। अब कह रहे हैं कि ममता राज को उखाड़ने के लिए मोदी जी के नेतृत्व में काम करेंगे। सीबीआई उन्हें ‘ममतापुर’ से उखाड़कर फिर से सलाखों के पीछे भेजती, उससे पहले ही नए राष्ट्र के निर्माण यक्ष में आहूति देने के लिए बुला लिया गया है।
कालेधन के खिलाफ नोटबंदी वाली क्राति की पहली वर्षगांठ से ठीक पांच दिन पहले बंगाल का ये प्रतापी नेता को पवित्रतावादी पार्टी का एक अहम किरदार बन गया है। अब उनके पाप धोने के लिए आने वाले दिनों में बीजेपी प्रवक्ता को नई दलीलें देते हुए सुनेंगे। मुकुल रॉय की हाईकमान रहीं ममता बैनर्जी को भ्रष्टाचारी और मुकुल रॉय को सदाचारी साबित करने तर्क गढ़े जाएंगे। वैसे ही जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबे हिमाचली नेता पंडित सुखराम को अपने गंगा जल से आचवन कराने के बाद बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने तीन दिन पहले कहा - “जो बीत गई, सो बात गई। कानून अपना काम करेगा “। हरिवंश राय बच्चन ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी इस कविता का इस्तेमाल कोई सत्ताधारी दल सुखराम जैसों का पाप धोने के लिए करेगा। सुखराम के मामले में बीजेपी नेता का ये तर्क सुनकर तो ये लगा था कि बीजेपी अब खुले तौर पर ‘जो बीत गई सो बात गई वाली कैटेगरी ‘ के भ्रष्टाचारी नेताओं को धो-पोछकर जरुरत के हिसाब से अपने शोकेस में सजाने को तैयार है। सुखराम का मामला तो वैसे भी करीब बीस साल पुराना है। तो बीजेपी ने हो सकता है कि कोई मियाद तय कर ली होगी कि भ्रष्टाचार का मामला अगर पुराना हो। मौसम अगर चुनावी हो। नेता अगर वोटजुटाऊ हो तो ‘जो बीत गई सो बात गई ‘ कहकर उसे अपने घाट का पानी पीने के लिए बुलाया जा सकता है। भ्रष्टाचारी अगर वोटवैंक वाला हो तो उसके अतीत पर गंगाजल से पोछा मारकर अपने पाले मे लिया जा सकता है। मुकुल रॉय के स्वागत सत्कार के बाद तो लगता है कि जो बीत गई सो बात गई कि मियाद महीने -दो महीने तक भी हो सकती है। पाप करो उधर, साफ करो इधर की तर्ज पर ……चुनाव जीतने के लिए साम-दाम-दंड-भेद को अपनाने की मिसाल है मुकुल रॉय जैसे नगीनों को पार्टी में इंट्री। ऐसी इंट्री पहले भी होती रही है। आने वाले दिनों में इंट्री के दरवाजे को और चौड़ा किया जा सकता है। ज्यादा आओ। ज्यादा लाओ ( वोट)।
अब मेरा एक सुझाव है। बीजेपी को ’जो बीत गई सो बात गई ‘वाली राष्टीय लिस्ट बनानी चाहिए। बीतने की एक मियाद तय कर दें। ऐलान कर दें कि गुनाह किस -किस दर्जे का और कितने दिनों पुराना होगा तो उसे बीतने की श्रेणी में जाल दिया जाएगा। पार्टी को अपने नए विधान -संविधान में भी ‘जो बीत गई सो बात गई’ वाली कैटेगरी का जिक्र कर देना चाहिए। पूरी पारदर्शिता के साथ। पार्टी में इंट्री के ख्वाहिशमंदों को भी पता रहेगा कि वो कब इस कैटेगरी के लिए एलिजिबल हो जाएंगे। फिर पार्टी ने न कोई सवाल पूछा जाएगा। न नेताओं को बचाव में नई कविता सुनानी पड़ेगी। फायदा ये होगा कि हर राज्य से बीजेपी को ऐसे प्रतापी जेल रिटर्न नेता मिल जाएँगे, जो चुनावी मौसम में शिद्दत से पार्टी की तूरही बजाएँगे। ऐसे खेले -खाए -पीए -अघाए नेताओं को ‘जो बीत गई सो बात गई ‘ के नारे के साथ पार्टी में शामिल करने के कई फ़ायदे भी होंगे। मालदार आसामी के अंदर आने से पार्टी पर कम से उनके इलाक़े के ख़र्चे का लोड नहीं पड़ेगा। ठीक -ठाक वोट पड़ेगा,सो अलग। हर्रे लगे न फिटकिरी रंग चोखा आए। लोकसभा चुनाव में भी अब डेढ़ साल ही रह गया है। राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे वीतरागी नेताओं की जनगणना का काम शुरु कर देना चाहिए। पहली और बड़ी खेप तो यूपी -बिहार से ही पार्टी को मिल जाएगी। जिनके अतीत पर गंगा जल से पोछा मारकर ‘जो बीत गई सो बात गई ‘ नारे के साथ कमल निशान के साथ मैदान में उतारा जा सकेगा। पब्लिक मेमेरी भी छोटी होती है। जनता अपने जनार्दन के गुनाह जल्दी भूल जाती है। कई बार जनता गुनाह वाले को ही अपना जनार्दन मानकर जिता देती है। जब जनता अपना स्टैंड चेंज कर सकती है तो बीजेपी क्यों नहीं? जिस भी पार्टी को ऐसे लोगों की दरकार हो, उनका गुनाह भूलकर उन्हें नए सिरे से कबूल करें।
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